सरमाया

करिश्मा ऐ कुदरत है या गुलों की मज़बूरी

चमन पर सुरूर सा कोई छाया है

हौंसला जमाने  को जो  दिखा पाता है

शान में  उसके  सब ने  सर झुकाया है 

बहारों रौनके चमन पर  यूँ न इतराओ

वक्त की मार से कब कोई बच पाया है

गुलों की रानाइयाँ एक दिन फना हो जायेगीं

शाम ढलते ही छुप जाता अपना साया है  

ये  हकीकत भी बहुत ज़ालिम है ‘दिव्यांश’

छीन ले जाता है जो यादों का सरमाया है……..

खेलत फाग मुरारी

बिरज में खेलत फाग मुरारी

चहुँ दिस रंग गुलाल उड़त हैं 

धार कनक पिचकारी

ललिता विशाखा रंग बनावैं

गोपियन फाग सुनावैं

श्याम रंग चित चढ्यो है ऐसो

रंग न दूजो भावैं

श्याम के गाल गुलाल मलत हैं

पुलकित राधा प्यारी

देख गोपी सब मगन होय रहीं

बांकीं छवि बनवारी

अदभुत लीला होय रही है

सुध बिसरे नर नारी

बिरज में खेलत फाग मुरारी ……..

उद्धव गोपी संवाद

उधो जाय कहिहौं  मोहन सौं

अबके फाग उदास

विरही मन बदरंग भयो है

नयनन लग्यो है प्यास

जाय बसे परदेस मुरारी

कौन करे बरजोरी

किन संग खेलूँ रंग बिरज में

भाए न अबके होरी

विरह अगन में सुलगत तन मन

आ जाओ यदुवीर

श्याम बिना हे उधो कैसे

भाए रंग अबीर ……  

कुछ लोग

उदासीन रिश्तों को ढोते

भावशून्य  बन गए हैं लोग ,

अपनेपन की हत्या करते

पत्थर दिल बन गए हैं लोग !

कौन सुनाये ,किसको ,किसका ?

डूबे अपनी व्यथा में लोग ,

अपने मन को सुन ना पाते

उलझे ऐसी कथा में लोग |

संबंधों में सड़न हो रही ,

अपनी नाक बचाते लोग ,     

झूठी मर्यादा, इज्जत की

देते रोज दुहाई लोग !

किधर से आये ,किधर है जाना ?

भूल गए सब राहें  लोग ,

दायित्वों को भूल चुके हैं

अधिकारों को चाहें लोग !!

जय का ध्वज

नीर भरी बदली है आशा न जाने कब बरसेगी

मन की प्यास बुझा पायेगी या ये धरती तरसेगी

समय सबल है ,कब जागेगा, कब ये राह दिखायेगा

नहीं जानता कोई भी ये रंग बदल कब जाएगा

पर मन इतना निश्चय कर लो ,धैर्य नहीं हम छोड़ेगें

अपनी इच्छाशक्ति से  उलटी धारा भी मोड़ेगें

विफल प्रयासों से सीखेगें फिर से अलख जगाएंगे

अपने सपनों की मंजिल पर जय का ध्वज फहराएंगे ………..

सोचता हूँ क्या लिखूं मैं

सोचता हूँ क्या लिखूं मैं !

अर्थ अब अनर्थ हो गया

व्यवस्था है लुप्त प्राय ,

नैतिकता सो गयी है

कौन अब इसको जगाए !

राजनीति बिना नीति

व्यवसाय बन गया है ,

बहुजन हिताय कहाँ !

निज हिताय बन गया है  

विचारों की कौन कहे !

संस्कार क्या बला है ?

काटता जो  सबका गला

आदमी अब वो भला है !

नीयत है सोच रही

किस भाव पर बिकूँ  मैं ?

सोचता हूँ क्या लिखूं मैं  !!

कर्मठता

देखा करते स्वप्न हमेशा

मन ही मन खुश होते हैं

नहीं हिलाते हाथ पैर जो

जीवन भर वो रोते हैं

क्या करना है मेहनत कर के

देने वाला दाता है

समय से पहले भाग्य से ज्यादा

कौन भला ले पाता है

मन को यूँ ही समझा कर के

पौरुष का पल खोते हैं

देखा करते स्वप्न हमेशा

मन ही मन खुश होते हैं

देने वाला देता उसको

जो आवाज़ लगाता है

मेहनत कर के सोच को अपनी

राह नई दिखलाता है

समय से हर पल लोहा लेते

कर्मठ विजयी होते हैं

देखा करते स्वप्न हमेशा

मन ही मन खुश होते हैं

जो विघ्नों को गले लगाते

हार से जो न डरते हैं

लक्ष्य को अपने हासिल करने

हर क्षण उद्यम करते हैं

ऐसे भी हैं लोग जहाँ में

चाँद पे गेंहूँ बोते हैं  

देखा करते स्वप्न हमेशा

मन ही मन खुश होते हैं

नहीं हिलाते हाथ पैर जो

जीवन भर वो रोते हैं………..

पुनश्चः

मौन अब हो गया मुखर

चेतना  है सो गयी

सभ्यता असहाय हो कर

बस्तिओं में खो गयी

सिसकते संबंध सारे

याचना हैं  कर रहे

युधिष्ठिर भी हुए बेबस

सत्य से हैं  डर रहे

सामर्थ्य  पराजित सा

युद्धभूमि में पड़ा

स्वाभिमान सर झुकाए

हाथ जोड़े है खड़ा

आ गया अब समय वो

जब सिंहनाद तुम करो

भग्न मूल्यों को सहेजो

पुनः स्थापित करो !!!!   

संबंध

यूँ ही वो कहते गए ,  

यूँ ही हम सुनते गए

जिंदगी की राह में हम

हमकदम चलते गए ,

कई बातें अनसुनी कीं

रास्तों में रुके भी ,

साथ निभाने की खातिर

कई बार झुके भी ,

हाथ छूटा साथ छूटा 

आस्था बनी रही

दूरियों के दरम्यां भी

दोस्ती बनी रही ,

साथ संबंधों के जो

निभा न पायेगा ,

वो भला इंसान

किसलिए कहलायेगा ????

सोये क्षण

समय से संवाद जब थमने  लगे

मन का कोलाहल भी जब कमने लगे

आस्थाओं पर निरंतर वार हो 

वंचना भी जब तुम्हें स्वीकार हो

समग्रता में सत्य का भाव हो

शून्यता को  समर्पित  हर दाँव हो

प्रतीक्षा में अनछुए अहसास हों

अपनत्व के क्षण भी जब उदास हों

मंजूषा तब विगत की तुम खोलना

सो गए पलों को  टटोलना

क्षण जो सोया कोई जाग जायेगा

लेख कोई नया सा लिख जायेगा ………