करिश्मा ऐ कुदरत है या गुलों की मज़बूरी
चमन पर सुरूर सा कोई छाया है
हौंसला जमाने को जो दिखा पाता है
शान में उसके सब ने सर झुकाया है
बहारों रौनके चमन पर यूँ न इतराओ
वक्त की मार से कब कोई बच पाया है
गुलों की रानाइयाँ एक दिन फना हो जायेगीं
शाम ढलते ही छुप जाता अपना साया है
ये हकीकत भी बहुत ज़ालिम है ‘दिव्यांश’
छीन ले जाता है जो यादों का सरमाया है……..