द्वेष कलुष की कालिख पोंछो
मंगल ध्वनि बजाओ
आँगन गलियों चौबारों संग
दिल में दीप जलाओ
मुरझाये सपनों को सींचो
कुछ अरमान जगाओ
वंचित व्यथित विकल नयनों में
आशा दीप सजाओ
अंतरतम से नेह निचोड़ो
स्नेह सुधा बरसाओ
ज्योतिर्मय हो हर पल जीवन
ज्योति का पर्व मनाओ ……