कुछ कुछ गाता हूँ

 

कवि हूँ कुछ कुछ गाता हूँकवि हूँ

नयन मूंद देखूँ चित्रों को

तथाकथित अपने मित्रों को

संबंधों को और सपनों को

कभी पराये कभी अपनों को

उलझन को सुलझाता हूँ

कवि हूँ कुछ कुछ गाता हूँ

करूँ कल्पना छवि मनोहर

गहरे पैठूँ प्रेम सरोवर

बिखरे पल अनमोल धरोहर

आलिंगन उस पार उतर कर

काँटों को सहलाता हूँ

कवि हूँ कुछ कुछ गाता हूँ

अपलक दृष्टि मौन अपूरित

विगलित विचलित कुंठित खंडित

त्याज्य भी लगने लगते वन्दित

ढाई आखर के जो पंडित

नहीं समझ मैं पाता हूँ

कवि हूँ कुछ कुछ गाता हूँ ……

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