आजकल कुछ लिख नहीं पाता हूँ
ऐसा नहीं है कि सब कुछ ठहर सा गया है
जो कुछ बिगड़ा था सँवर सा गया है
अंतर तृप्त है या कोई प्यास है
उखड़ती नहीं अब कोई साँस है
जीवन में भर गया कोई रंग है
या कुछ नया करने की उमंग है
नयी मुलाकात है या नया सवाल है
सुर कोई नए है या नया ताल है
झूमते पेड़ अब भाते नहीं हैं
या अब हम कोई गीत गाते नहीं हैं
हाँ ऐसा भी कुछ नहीं है कि दोस्त बदल गये हैं
चोट खा-खा कर हम संभल गये हैं
आँखों का पानी गया है सूख
नहीं कोई तृष्णा या कोई भूख
अचानक आ गया है उबाल
या कोई सूखा या भूचाल
हाथ लग गया है कोई खजाना
या बैरी लगने लगा है जमाना
अच्छी लगने लगी है तन्हाई
या तान ली है हमने कोई रजाई
जमाने के साथ साथ बह नहीं पाता हूँ
बात इतनी सी है मगर कह नहीं पाता हूँ
तथाकथित सामाजिकता के हाथों मजबूर हो गया हूँ
अपने आप से ही कट कर दूर हो गया हूँ
क्योंकि अपने आप को दिख नहीं पाता हूँ
शायद इसीलिए आजकल लिख नहीं पाता हूँ ……….