लहरों में खो भीत गया
प्रत्याशा तृष्णा आकर्षण
ले कर मन का शीत गया
बहुत कमाया बहुत लुटाया
प्रीत गई न मीत गया
दांव लगाया हारा सब कुछ
छोड़ दिया तो जीत गया
सम्बंधों को मथ कर देखा
पिघल पिघल नवनीत गया
सुर सप्तक और गीत संभाला
जीवन से संगीत गया
बूंद बूंद कर जाने कैसे
अंतर्घट कब रीत गया
पतझड़ आये सावन बरसा
फिर वसंत एक बीत गया ……