ममता से माँ ,पिता प्यार से सींचा करते थे तन मन ,
पता नहीं कब कैसे बीता नहीं भूलता वो बचपन |
माँ की आँखों का था तारा पिता का राजदुलारा था ,
मेरी आँखों में हो आंसू उनको नहीं गवारा था |
बड़े लाड़ से सुबह सबेरे अम्मा मुझे जगाती थी ,
मुन्ने राजा भोर हो गयी कह के मुझे उठाती थी |
नींद भगाने को अँखिओं से गले से मुझे लगाती थी ,
ममता के कोमल हाथों को पीठ पे मेरे फिराती थी |
मेरी हर इक हँसी पर माँ अंतर से मुस्काती थी ,
बाल सुलभ हर अदा पर मेरी वारी वारी जाती थी |
मेरा हर पल सुख में बीते सौंप दिया था तन मन धन,
पता नहीं चुपके से कैसे बीत गया प्यारा बचपन !
sundar rachna
पता नहीं कब कैसे बीता नहीं भूलता वो बचपन…
very true ! bachpan kab beet jata hai pata hi nahin chalta, bas yaden hi rah jati hain, ya fir ek chaah… “koi lauta de mere bachpan ke din”
realy awsome