गणतंत्र III

भ्रष्ट हुआ प्रजातंत्र भारती विकल है ,

राजनीति अब घनघोर दल दल है |

ग्राह से त्रस्त हुई रो रही है जनता ,

मोक्ष की प्रतीक्षा में अब हर पल है |

समाधान लुप्त हुआ आश भी निराश है ,

गंगाजल से भी नहीं बुझ रही प्यास है |

खोजते फिर रहे भारती की लाज हम ,

गुम हो गया जो कहीं यहीं आसपास है |

नौजवानों उठो अब देश ये पुकारे ,

आओ मिल हम गणतंत्र को संवारें !