ख़ामोशी सुनने लगे
बेतहाशा भागती रफ्तार
भी थमने लगे
सर्द होती वेदनाएं
ज्वार बन बहने लगे
मौन भी जब फुसफुसा
अपनी व्यथा कहने लगे
दिलासा अधीर हो कर
धैर्य से लड़ने लगे
अधूरी अतृप्त चाहत
असमय मरने लगे
एक तिनका उठा लेना
करना बस इतना ही प्रण
समय को है जीतना
है विजय को करना वरण !
दिलासा अधीर हो कर
धैर्य से लड़ने लगे
अधूरी अतृप्त चाहत
असमय मरने लगे
एक तिनका उठा लेना
Just beautiful…….touches the cord somewhere inside the heart
दिलासा अधीर हो कर
धैर्य से लड़ने लगे
WOW… its too good…
बेहतरीन लिखे हैं सर!
सादर
मंजु जी , Reacharc एवं यशवंत जी
मानवीय संव्रेद्नाओं का अंतर्द्वंद जब घनीभूत हो कर किंकर्तव्यविमूढ़ता की परिस्थिति का सृजन करने लगे तो अंतर की छटपटाहट को एक सार्थक दिशा देने का प्रयास ही नकारात्मकता पर विजय होगी ,यही सोच इस रचना की पृष्ठभूमि बनी | आपने इसको महसूस कर के मेरे प्रयास को एक आयाम दिया , आप सब का हार्दिक धन्यवाद …..
बहुत सही कहा आपने….गर जीतना है आज को तो कल को भुलाना होगा….भविष्य की चिंता को छोड़ मुस्कुराना होगा….
गर करे एक त्रण उठाकर हम विजय पाने का प्रण……
फिर कभी का मुड कर देखे बिता हुआ एक भी क्षण……