ज्योति पर्व

 

द्वेष कलुष की कालिख पोंछोज्योतिपर्व

मंगल ध्वनि बजाओ

आँगन गलियों चौबारों संग

दिल में दीप जलाओ

मुरझाये सपनों को सींचो

कुछ अरमान जगाओ

वंचित व्यथित विकल नयनों में

आशा दीप सजाओ

अंतरतम से नेह निचोड़ो

स्नेह सुधा बरसाओ

ज्योतिर्मय हो हर पल जीवन

ज्योति का पर्व मनाओ ……

3 टिप्पणियाँ “ज्योति पर्व” पर

  1. जिस प्रकार एक चित्र सहस्त्र शब्दों से अधिक होता है, उसी प्रकार कवि की शक्ति
    उसकी लेखनी से प्रवाहित होती है और कविता समाज का दर्पण बन जाती है। प्रस्तुत
    लघु कविता सम्पूर्णतः दीपोत्सव का प्रकाश और महत्व दर्शाने में सफल है। ऐसी
    रचनाएँ प्रतीक्षायोग्य होती हैं।

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