नया विहान

हम  सत्ता  के नहीं  पुजारी , हमको  न   पहचान  चाहिए

मुखरित हो हर जन की आशा ,हर नारी का मान चाहिए

बढ़ती मंहगाई के दुःख से ,अब तो  हमको  त्राण चाहिए

हर  भूखे को  मिले दो- रोटी , हर  हाथ को काम चाहिए

दबे गिरे कुचले जन जन का खोया  स्वाभिमान चाहिए

रोटी कपड़ा मिले सभी को ,सब के लिए मकान चाहिए

बचपन खेले हर आँगन में, देश के लिए  जवान चाहिए

मात –पिता    की हो सेवा ,उनके प्रति सम्मान चाहिए

गिरती  नैतिकता,  मानवता  दोनों का उत्थान चाहिए

संस्कृति मृतप्राय पड़ी है ,नव जीवन  नव प्राण चाहिए

भूल चुके हम जिस गौरव को,हमको वो अभिमान चाहिए

भ्रष्टतंत्र की रात है काली ,हमको नया विहान चाहिए

भारत भू पर छाया है तम ,तेजोमय दिनमान चाहिए

आम आदमी के चेहरे पर मीठी सी मुस्कान चाहिए

मर्यादा ,निज धर्म की रक्षा ,गौ माँ का सम्मान चाहिए

तेजोमय ओजस्वी संतति,भारत को विद्वान चाहिए

विविध संपदाओं से परिपूरित ,भारत हमें महान चाहिए   



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