कई बार कुछ गाया भी
कई बार झुठलाया सब कुछ
कई बार जतलाया भी
कई बार सब नाता छोड़ा
कई बार निभाया भी
कई बार गुब्बारा छीना
कई बार धमकाया भी
कई बार रूठा अपनों से
कई बार ठुकराया भी
कई बार की हँसी ठिठोली
कई बार बहलाया भी
कई बार जा बैठा गुमसुम
कई बार समझाया भी
कई बार उलझा प्रश्नों से
कई बार था पाया भी
कई बार था स्वांग रचा
कई बार ईठलाया भी
कई बार प्रस्फुटित हुआ
कई बार कुम्हलाया भी
कई बार सब भूल के देखा
कई बार अपनाया भी
कई बार बस डूब गया और
कई बार उतराया भी
कई बार सब पा कर खोया
कई बार सब पाया भी
कई बार जा कर के देखा
कई बार फिर आया भी
कई बार बस कई बार
बार बार फिर कई बार …
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दर्पण झूठ न बोले
बहुत खूब!
बढ़िया।
कई बार…….हाँ ये सब होता रहता है कई बार……
सुन्दर शब्द रचना…