जगा गया कुछ उनींदे अहसास
जितनी कोशिश की बुझाने की
बढ़ती ही गयी मन की प्यास
इसका व्याकरण भी अजीब है
संधि और समास से परे
धड़कनों के बहुत करीब है
अनकही व्यथा का दंश है
किसी क्रमशः का शेष अंश है
कई उदास रातें हैं ,तन्हाई है
कभी मिलन है ,कभी जुदाई है
कभी पास बुलाता है ,कुछ समझाता है
कभी बहुत रुलाता है ,तडपाता है
कभी शिकवा है तो कभी समाधान
कभी लगता है अपना तो कभी अनजान
कभी समर्पण है तो कभी मज़बूरी
कभी संतृप्ति तो कभी आस अधूरी
मौन की गहराइयों में जब उतरता हूँ
कभी जीता हूँ तो कभी मरता हूँ
लगता है जब मौन को पढ़ पाऊंगा
जीवन का सत्य समझ जाऊंगा ……………..
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