शुभाशीष

 

तू मेरा प्रतिरूप ,तुझमें

देखता हूँ अपनी छाया

तेरी निश्छलता में मैंने

अपना खोया समय पाया

ऊँगली पकड़ी ,हाथ पकड़ा

अब तो कंधे को मिलाता

गुजरते वसंत जाते ,

कुछ नये सपने सजाता

हो रहा गंभीर अब तू

मौन से कहने लगा है

छोड़ बचपन का किनारा

धार में बहने लगा है

देखने कई रंग तुझको

वक्त को ललकारना है

विघ्न तो आयेगें अक्सर

नहीं तुमको हारना है  

मेरी पूजा ,कर्म मेरा

तुझसे ही फलीभूत होगा

सफलता तुझको मिलेगी

मेरा पुण्य प्रभूत होगा………

 

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