मौन जब गाने लगा था
व्योम के विस्तार में हम डूब उतराने लगे थे
पास बैठे थे सिमट के फिर भी अनजाने बने थे
देखती तुम रही अपलक अश्रु बिंदु दृग ढले थे
अचानक क्या हुआ था फेर के मुख तुम चले थे
मैं बना असहाय कातर थाम न पाया था आँचल
न ही बन पाया पवन मैं उड़ा ले जाता जो बादल
कैसा था उफान उफ वो दम घुटा जाता था हर पल
जानती हो किस तरह से रोक पाया था मैं खुद को !
कितने टुकड़ों को समेटा तब जुटा पाया था संबल
फासले मिट गए थे जब प्यार सहलाने लगा था
चांदनी पसरी थी शीतल मौन जब गाने लगा था ………..
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