मिल ही गए थे हम ,
नहीं, मिले नहीं थे
अचानक टकरा गए थे —
जगह कोई भी रही हो ,
कोई फर्क नहीं पड़ता —-
संदर्भ तो केवल यह है कि
मुलाकात हो गयी …
अकेली नहीं थी तुम ,
अनेक सवालों से घिरी …..
सवाल जो जवाब की प्रत्याशा में
उद्वेलित कर रहे थे
विचारों की श्रंखला को
अतीत का अथाह सागर,धीर गंभीर
उभर रही थी अनेक विस्मृतियाँ
फिर यकायक तन्द्रा टूटी मेरी
सहेज लिया था मैंने सब कुछ
दिल के किसी अँधेरे गुमनाम से कोने में
यादें तो होती ही हैं चुपचाप
सहेज समेट कर रखने को —-
तुमने कुछ भी तो न कहा
तुम्हारी थरथराती निगाहें
ख़ामोशी के दायरों में
सवालों की गूंज बन कर
मांग रही थी मेरे विगत का हिसाब
तुमसे कट कर किस तरह ढोया है
मैंने इन सांसों को,
वो त्रासद स्थिति बता न सकूंगा
कितनी अपरिचित सी थी
तुम्हारी उपस्थिति
मैं असमंजस से घिरा छटपटा रहा था
एक रास्ते की तलाश में
उफ! कितनी भयावह स्थिति थी वह
क्यों हो गया था मैं उतना असहाय
जुबान खामोश हो गयी थी
बेबसी की भाषा सब नहीं समझ सकते
पर तुमने तो समझ लिया था बहुत कुछ
शायद इसीलिए उतर आया था
आँखों में पानी
नहीं , पानी नहीं
वह था आंसू
दिल से बह निकली थी
एक निर्झरिणी
दिलासों का बाँध भी
रोक न सका था उसके उफान को
तब बहुत कुछ कहना चाहा था मैंने
परन्तु न जाने क्यों
कुछ भी न कह पाया
केवल उठे थे मेरे हाथ
बेजान यंत्रवत से
पोंछ देने को वो बूंद
शीशे पर फिसलते वाइपर की तरह
पर अनुभूतिओं की पीड़ा
धुंध बन कर छा गई थी चेहरे पर
मैंने कोशिश की थी
कि बन जाऊं प्रणय किरण
और समेट लूँ उस धुंध को
अपनी आगोश में
छुपा के ले जाऊं
सबकी नज़रों से
पर वो सवालिया निगाहें
घूरती हुई पहरेदार नज़रें
तुम भी तो अपरिचिता का स्वांग ओढ़े
अनामिका बनने का प्रयास कर रही थी
क्रमशः ………