शब्द के सामर्थ्य को क्या हो गया
नाद का गुंजन कहाँ है खो गया
हैं कहाँ प्रतिमान सम्यक सार्थक
मूल्य और सन्दर्भ कैसे सो गया !
दृष्टि अब तो मौन है ,असमर्थ है
त्याज्य था जो ग्राह्य कैसे हो गया
स्मृति के हर चरण को माप लो
अनागत प्रसंग भी है खो गया |
ऋचाओं की गूंज में जो सत्य था
मंदिरों की घंटियों में क्यों खो गया ……..
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बहुत खूब … ऐसे कई प्रश्न जीवन में रह जाते हैं जिनके उत्तर आसान नहीं होते …