ग़मों के साये हैं ,भूख है ,बेचारगी है
सवालात इश्क के वो उठाते चले गए
कौन पूछेगा हाल ए दिल किसी शख्स आम का
चंद खास लोगों से वो निभाते चले गए
यूँ तो गम और भी हैं इस बेदर्द जमाने में
वो सच्चाइयों से दामन बचाते चले गए
जिधर भी देखता हूँ उन्हें ही पाता हूँ
जो ख्वाबों को गले से लगाते चले गए
अहसास छलकते हैं, पैमाने से उनके
अफसोच वो मुफलिसों को भुलाते चले गये
हरेक चेहरे पर छा जाए खुदा का नूर ‘दिव्यांश ‘
शान में उसके सुबहो शाम सर झुकाते चले गए |
Advertisements