अंतिम बार

संचरित होता आत्मपीड़ा का बादल

अतीत  का खुला आसमान

सिलसिला अंतहीन यात्रा का

बहुत भटका हूँ मैं

अनछुए अपरिचित अहसासों के बीच

बस एक बार

एक बार और

महसूस करना चाहता हूँ उस भटकन को

अंतिम बार

फैला दो अपने अंतर की बाँहें

अस्मिता की तलाश है मुझे

तुम्हारे अंतर्मन के शहर में

तलाशना चाहता हूँ

उसी पड़ाव को

जो दे सके मेरी आत्मपीड़ा को

एक ठहराव, समेट सके

अपने विस्तार में

अपनी संपूर्णता के साथ

बस एक बार

अंतिम बार   

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