कौन सुनेगा जन गण मन की,किसको यह कह पाएगी
रक्षक जब बन बैठे भक्षक , किसको व्यथा सुनाएगी
विपदाओं की बात न पूछो , एक कोई हो तब तो कहे
धीरज की भी सीमा होती , कोई कहे कब तलक सहे
मंहगाई ,कानून व्यवस्था,बिजली ,पानी ,सड़क सभी
बरसों बीत गए हैं सुनते , हो पायेगें सही कभी
नेताओं से भाषण सुन लो , बात करो न राशन पर
चाहे जनता रैली कर ले या वो बैठे अनशन पर
खाल है इनकी इतनी मोटी , गेंडा भी शरमा जाए
मक्कारी और बेशर्मी को भी पसीना आ जाए
मौसम आता जब चुनाव का, वेष नया धर लेते हैं
जनता का मत लेने को तब कान पकड़ ये लेते हैं
भोली भाली निश्छल जनता फिर गलती दोहराती है
किसी निकम्मे नेता को फिर चुन के पछताती है
पता नहीं इस भ्रष्टतंत्र की हांडी किस दिन फूटेगी
लोकतंत्र की अमृत वाणी कब संसद में गूंजेगी
निष्कलंक , निष्कपट , मनस्वी जननायक कब आएगा
जन गण मन की व्यथा कथा को एक विराम दे पायेगा
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bahut badhiya
उत्साहवर्धन लेल अनेकानेक धन्यवाद | भविष्य मे विस्तृत टिप्पणिक आशा करैत छी |